बड़ी बेटी की नोटबुक के दो पन्नों ने खोला राज, कौन सी मजबूरी ने पिता को बनाया कातिल?

बड़ी बेटी की नोटबुक के दो पन्नों ने खोला राज, कौन सी मजबूरी ने पिता को बनाया कातिल?

बड़ी बेटी की नोटबुक के दो पन्नों ने खोला राज, कौन सी मजबूरी ने पिता को बनाया कातिल?

गोरखपुर जिले में एक पिता अपनी ही बेटियों का कातिल क्यों बन गया। उसने बेटियों को फांसी पर लटकाया और फिर खुद फांसी पर लटक गया। पिता और पुत्रियों की मौत को लेकर तरह तरह के सवाल उठ रहे थे। लोग चर्चा कर रहे थे कि एक पिता ऐसा कैसे कर सकता है लेकिन मौत का जो कारण सामने आया है। उसे जान पुलिस भी अपने आंसू नहीं रोक पाई। मरने से पहले बेटी ने अपने नोटबुक में पूरी कहानी बयां की है। दो पन्नों में दर्द की ऐसी दास्ता छिपी है कि जिसे पढ़ कर लोगों की आत्मा रो उठी है। तीन मौत के बाद अकेल बचे बुजुर्ग पिता का भी दर्द लोगों को झाकझोर दे रहा है। पिता और पुत्रियों की मौत से पूरे सिस्टम पर सवाल खड़ा कर दिया है। हर किसी के मुंह से एक ही बात निकल रही थी कि ईश्वर ऐसा दिन किसी को न दिखाए।

सोमवार की रात हुई थी तीन मौत
गोरखपुर जिले के घोसीपुरवा में 45 वर्षीय जितेंद्र श्रीवास्तव ने सोमवार की रात अपनी दो बेटियों के साथ आत्महत्या कर ली थी। पहले उन्होंने 16 वर्षीय मान्या और 14 वर्षीय मानवी को फांसी लगाकर आत्महत्या करने में मदद की। इसके बाद दूसरे कमरे में जाकर खुद को फांसी लगा लिया। मंगलवार की सुबह तीनों का शव बरामद हुआ। पोस्टमार्टम के बाद जितेंद्र के पिता ने तीनों शव का अंतिम संस्कार किया।

बड़ी बेटी मान्या ने दो पन्नों में बयां की दर्द की दास्तां 
तीनों की आत्महत्या पर तहर तहर के सवाल उठ रहे थे लेकिन मरने से पहले बड़ी बेटी मान्या ने दो पन्ने में आत्महत्या का कारण बयां किया है। बेटी ने लिखा है कि कैसे मां की मौत के बाद परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा था। बेटियों की जिंदगी को संवारने के लिए पिता दिन भर मेहनत करते थे लेकिन स्कूल फीस की व्यवस्था नहीं कर पा रहे थे। बाबा उन्हें दो वक्त की रोटी देने के लिए रात भर जागकर गार्ड की नौकरी करते थे। फिर भी जरूरत नहीं पूरी होती थी।

मान्या ने मरने से पहले क्या लिखा था नोटबुक में? 
अपने स्कूल के नोटबुक में बड़ी बेटी मान्या ने लिखा था कि निर्दयी जीवन ने पहले मेरी मां छीन लिया। इसका खामियाजा मेरे पिता भुगत रहे है। भगवान आपने कभी हमें खुशी से जीने नहीं दिया। दौलत क्या होती है हम नहीं जानते। मुझे लगता है कि मैं एक अभिशाप हूं। इसका दर्द अब और सहन नहीं कर सकती। मुझे कुछ खुशियां दे दो नहीं तो मेरा जीवन अंधकारमय हो जाएगा। सब लोग जानते हैं कि मैं बहुत मजबूत हूं। अंदर से टूट चुकी हूं। बस अब और नहीं।

 जितेंद्र ने स्कूल को लिखा था प्रार्थना पत्र 
मान्या की नोटबुक में एक पन्ने पर जितेंद्र श्रीवास्तव द्वारा बेटियों के प्रधानाचार्य के नाम लिखा एक प्रार्थना पत्र भी था। जितेंद्र ने लिखा था कि अभी मेरी हालत ऐसी नहीं है कि बेटियों की फीस जमा कर संकू। मैं फीस जमा कर दुंगा। बेटियों को पढ़ने दिया जाए। उनहोंने प्रधानाचार्य से बकाया फीस जमा करने के लिए समय मांगा था।

 पांच माह से जमा नहीं हुई थी फीस 
जितेंद्र की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि वह पांच महीने से बेटियों की स्कूल फीस नहीं जमा कर पाया था। तमाम कोशिश के बाद भी जब उसे कोई रास्ता नहीं दिखा तो उसने मौत का रास्त चुन लिया।

अब क्या होगा जितेंद्र के बुजुर्ग पिता ओमप्रकाश का
आर्थिक तंगी से मजबूर होकर जितेंद्र ने बेटियों के साथ आत्महत्या कर लिया लेकिन एक बार भी नहीं सोचा कि उसके बुजुर्ग पिता का क्या होगा। 65 साल के ओमप्रकाश बेटे और पोतियों की मदद के लिए आज भी गार्ड की नौकरी करते थे। पोस्टमार्टम के बाद जवान बेटे और बेटियों के शव को मुखाग्नि देने के बाद वे पूरी तरह टूट से गए हैं। समझ नहीं पा रहे कि किसके सहारे जिएंगे। दो साल पहले बहू सिम्मी छोड़कर चली गई। चार माह पहले पत्नी सुधा की मौत हो गई। बेटा और पौत्रियां भी छोड़कर चली गईं।