माफिया प्रेम ने कभी छीनी थी सपा से सत्ता, अब डूबती नजर आ रही ओमप्रकाश राजभर की पार्टी

माफिया प्रेम ने कभी छीनी थी सपा से सत्ता, अब डूबती नजर आ रही ओमप्रकाश राजभर की पार्टी

माफिया प्रेम ने कभी छीनी थी सपा से सत्ता, अब डूबती नजर आ रही ओमप्रकाश राजभर की पार्टी

आजमगढ़. पिछले दो चुनाव से लगातार यूपी की राजनीति की धुरी बनने की कोशिश में जुटे सुभासपा मुखिया ओमप्रकाश राजभर आज अपनों के ही वार से बेजार दिख रहे है। कोई पार्टी का उपयोग धन उगाही के लिए करने का आरोप लगा रहा है तो कोई उन्हें माफिया मुख्तार अंसारी का संरक्षणदाता करार देकर पार्टी छोड़ रहा है। जबकि सपा से रिश्ता तोड़ने के बाद सुभासपा मुखिया का प्लान 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर कुछ और ही था। वैसे ओपी राजभर पहले नेता नहीं है जिन्हें माफिया प्रेम भारी पड़ा है। माफिया प्रेम के चलते ही सपा में टूट हुई थी जिसके परिणाम स्वरूप पार्टी को 2017 में सत्ता से हाथ धोना पड़ा था। उस नुकसान की भरपाई आज भी सपा नहीं कर सकी है।

वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा ने यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। जिस तरह का माहौल था माना जा रहा था कि सपा वर्ष 2017 में फिर बहुमत हासिल करेगी लेकिन वर्ष 2016 में शिवपाल यादव और बलराम यादव ने मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का सपा में विलय कराया। अखिलेश यादव ने विलय को नकारा तो पार्टी दो फाड़ में बंट गई। शिवपाल यादव पार्टी से अलग हुए जिसका नुकसान सपा को वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ा। पार्टी सत्ता से बाहर हो गई। यह अलग बात है कि बाद में अखिलेश यादव ने मुख्तार अंसारी के भाई को गले लगा लिए लेकिन सपा में वर्ष 2016 में शुरू हुई रार आज तक नहीं थमी है। चाचा भतीजा का झगड़ा आज भी जारी है।

वर्ष 2022 के चुनाव में सपा मुखिया अखिलेश यादव ने मुख्तार अंसारी और उनके पुत्र को पार्टी में भले ही न लिया हो लेकिन उनके गठबंधन के साथी ओमप्रकाश राजभर ने न केवल मुख्तार अंसारी के पुत्र को टिकट दिया बल्कि मंच से खुलकर मुख्तार का समर्थन करते नजर आए। मुख्तार के पुत्र अब्बास को टिकट मिलने का परिणाम रहा कि सुभासपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष महेंद्र राजभर हाशिए पर चले गए। कारण कि 2017 के बीजेपी गठबंधन में महेंद्र सुभासपा के टिकट पर चुनाव लड़कर मुख्तार अंसारी से मामूली अंतर से हारे थे। उन्हें मुख्तार अंसारी से मात्र 8,698 मत कम मिले थे। महेंद्र ने पूरे पांच साल क्षेत्र में काम किया था और उन्हें भरोसा था कि वे 2022 में पक्का विधानसभा पहुंच जाएंगे लेकिन ओमप्रकाश ने चुनाव में मुख्तार के बेटे को तरजीह दी।

जिस दिन अब्बास अंसारी को टिकट मिला उसी दिन सुभासपा में विद्रोह की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी। कारण कि पूरे चुनाव में महेंद्र राजभर निष्क्रिय रहे। मन में दबी यह टीस छह माह बीतते-बीतते बाहर आ गई और पूर्वांचल में अति पिछड़ों, दलितों की पार्टी कहीं जाने वाली सुभासपा में बड़ा विस्फोट हो गया। पांच सितंबर को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष महेंद्र राजभर ने राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर पर पार्टी का उपयोग रुपया बटोरने के लिए करने का आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ दिया। वे अपने साथ दर्जन भर नेता भी ले गए। इसके बाद पार्टी छोड़ने का सिलसिला सा चल निकला। अब तक 115 पार्टी कार्यकर्ता इस्तीफा दे चुके हैं। इससे जहां पार्टी बैकफुट पर आ गई है तो लोकसभा चुनाव में भी इसके दुरगामी परिणाम देखने को मिल सकता है। रहा सवाल ओमप्रकाश राजभर को तो वे पार्टी में टूट का ठिकरा सपा पर फोड़ रहे हैं, जबकि पार्टी के नेता सीधे तौर पर ओमप्रकाश की धन की लालसा और माफिया प्रेम को जिम्मेदार मान रहे हैं।