भाजपा की बागडोर चौधरी के हाथ.. आखिर क्यों अध्यक्ष बनते बनते रह गए केशव मौर्या, जानिये राजनितिक सफर
लोकसभा सीटों पर बीजेपी को 2024 में बिल्कुल सीधे फायदा होगा
अर्जुन राय..
उत्तर प्रदेश में योगी 2.0 की सरकार बनने के बाद जब पहले मंत्रिमंडल का गठन हुआ तब से मेरे मन मस्तिष्क में एक सवाल घर किये जा रहा था कि स्वतंत्रदेव सिंह के बाद भाजपा की कमान कौन संभालेगा.
हालांकि केशव मौर्या और बीएल वर्मा को मैं OBC चेहरे के तौर पर तो बिल्कुल तय मानकर चल रहा था. किंतु जब मसला सिर्फ़ औऱ सिर्फ जातिगत और केवल जातिगत समीकरणों पर तेज सधने लगा तो मुझे ख्याल आया कि अरे ब्राह्मण भी तो भगवादल का प्रदेश अध्यक्ष बन सकता है उसमें चाहे योगेंद्र उपाध्याय हों या सुब्रत पाठक, दिनेश शर्मा हों या श्रीकांत शर्मा.पर ये देखो ले दलितों में कुछ नामचीन चेहरे जैसे केंद्रीय राज्य मंत्री श्री भानु प्रताप मौर्या ,
रामशंकर कठेरिया और विद्यासागर सोनकर पर मैं दाव लगा रहा था पर भाई जेपी नड्डा ने तो मिनट भर में मेरी राजनितिक समझ को बौना कर भूपेंद्र चौधरी को उत्तर प्रदेश का नया प्रदेश अध्यक्ष बना दिया. आज जब चौधरी की चौधराहट के अतीत को टटोल रहा था तो मुझे ज्ञात हुआ कि इस बन्दे के पास संगठन का लंबा तजुर्बा, जाट बिरादरी के साथ पश्चिमी यूपी का आला अनुभव है.आपको बताते चलूं भूपेंद्र चौधरी वर्ष 2007 से 2012 तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय मंत्री रहे.
वहीं साहब 2011 से 2018 तक लगातार तीन बार पश्चिमी यूपी के क्षेत्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैं.आख़िर सिर्फ BP चौधरी ही प्रदेश अध्यक्ष क्यों जब इस सवाल पर उबासी ले रहा था तो इसके पीछे भी मुझे दहाइयों कारण समझ आये.भूपेंद्र चौधरी को यूपी में पार्टी की कमान सौंपकर पश्चिमी यूपी में आरएलडी-सपा के गठबंधन का असर कम करने की भी ये रणनीति हो सकती है.इतना ही नहीं बीजेपी को 2022 के चुनाव में सूबे के जिस इलाके में सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है,
वो पश्चिमी यूपी के सहारनपुर से लेकर उधर मुजफ्फरनगर, बिजनौर , मुरादाबाद , अमरोहा , बरेली और रामपुर है. चौधरी इसी क्षेत्र से आते हैं. इसीलिए उनको आगे किया जाना लगभग तय था.गौर करियेगा भाजपा के इस तीखे मास्टरस्ट्रोक से पश्चिमी यूपी की जाटों के प्रभाव वाली डेढ़ दर्जन लोकसभा सीटों पर बीजेपी को 2024 में बिल्कुल सीधे फायदा होगा. खैर जाट समुदाय से आने वाले भूपेंद्र चौधरी को बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के साथ-साथ सूबे के अनुभवी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भी करीबी माना जाता है. इसके अलावा ये आरएसएस के पुराने स्वयंसेवक भी हैं. ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष के रूप में जाट चेहरा लाकर भाजपा जहां किसान आंदोलन के कारण पार्टी से दूर माने जा रहे जाटों और किसानों को साध सकती है तो पश्चिमी यूपी में पार्टी का आधार और मजबूत कर सकती है.
