आखिर क्यों प्रीति राजकुमार पाल को "बहू जी" का खिताब हासिल है?
ज़िला पंचायत सदस्या श्रीमती प्रीति राजकुमार पाल उर्फ़ "बहू जी"। "सास" कभी "बहू" थी और "बेटी" कभी "सास" बनती है
अनमोल विचार,
बेटी और सास के बीच के बेहद संवेदनशील पायदान पर काबिज "बहू" की ज़िंदगी को सही मायनों में फलीभूत करने की एक जीवंत कहानी को लफ़्ज़ों में बयां करना ग़ैर मुश्किल भरा है मगर ज़ीना चुनौतियों से सुसंस्कृत और सराबोर होता है। हिन्दुस्तान में आधी आबादी की ताकतवर दस्तख़त एक महिला की औसतन उम्र तकरीबन 70-75 बरस होती है जो कायनात में दस्तक देने के तकरीबन 25 बरस तक अपने मां-बाप के यहां बेटी बनकर रहती है। दाम्पत्य जीवन में आने के तकरीबन 25 से 55 बरस तक "बहू" के किरदार में नजर आती है और फिर आखिरी पायदान पर - 55 बरस से आखिरी सांस तक सास की भूमिका में। किसी ने ये मुजस्सिमा गढ़ा कि बेटियां ज्यादा जुझारू और संघर्षशील होती हैं तो किसी ने घर की बूढ़ी सास को बड़ा लेकिन इतर दर्जे से नवाजा है। "मुहल्ले की सबसे निशानी पुरानी......" और "बेटियों से ही आबाद है दुनिया......" - सुदर्शन फाकिर से लेकर साहिर लुधियानवी और राहत इंदौरी तक के नामचीन शायर ने भी "बेटियों" और "सासु मां" के कसीदे अपने रुहानी लफ़्ज़ों के जरिए रवां किया है। अलहदा लोगों की अलहदा सोच मगर किसी ने सच कहा है कि, "कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता...."। मगर न सिर्फ सोचने बल्कि महसूस करने का विषय तो ये है कि बेटीयां ज्यादा आज़ाद-परस्त जीवन जीती हैं और फिर अपने आखिरी दौर में सास के रुतबे के साथ महिलाएं मालकिन के किरदार में बखूबी नज़र आती हैं लेकिन अपनी जिंदगी के सबसे संवेदनशील, क्रांतिकारी, मेहनतकश और लड़ाका की तरह सबसे लम्बे दौर तकरीबन 30-35 बरस तक महिला जब अपने मायके से विदा होकर घर जाती है तो सामंजस्य से लेकर चुनौतियां तकरीबन हर दौर में "सास" की भूमिका में आने से पहले तक नज़र आती है।
"प्रीति राजकुमार पाल" उर्फ़ "बहू जी" आज एक "बहू" की भूमिका में बीते तकरीबन 20 सालों से समाजसेवा और सियासत के साथ ही साथ अब बिजनेस भी संभाल रही हैं - कभी बेटी की भूमिका में कभी बहू की अद्भुत अदाकारी में और कभी सास के किरदार में। बात सियासत की आती है तो परिवार के बीच सामंजस्य स्थापित करते हुए जमीन पर मजबूती के साथ एक बेटी की तरह नज़र आती हैं और बात समाजसेवा की चलती है तो बहू की भूमिका में, चाहे मजलूम और गरीब जोड़ें की शादी हो या सिलाई मशीन गरीब महिलाओं को सुपुर्द करना हो या तालीम के लिए नौनिहालों को मां की भूमिका में खुद को समेट कर "सास" की तरह प्रस्तुत प्रस्तुत करना हो। बिज़नस और उद्योग के लिए एक पैर महाराष्ट्र के मुम्बई में तो दूसरा सिराजे-हिंद में। इस ताकतवर "बहू" को न धूप ने डिगाया, न रात ने डराया, न ही मजबूत होती ठंड की चादर में लिपटे कोहरे ने और न ही वक्त ने हराया। "बहू जी" कभी बेटी तो कभी सास बनकर लोगों के बीच अपनी ताकतवर मौजूदगी दर्ज करवाती रही हैं। लौह नेत्री, ताकतवर बेटी, जिंदादिल सास के साथ एक ज़िंदाबाद "बहू" की तरह आज समाजसेवा, सियासत और बिजनेस के क्षेत्र में झंडा गाड़ रही हैं नामचीन ज़िला पंचायत सदस्या श्रीमती प्रीति राजकुमार पाल उर्फ़ "बहू जी"। "सास" कभी "बहू" थी और "बेटी" कभी "सास" बनती है लेकिन एक "बहू" हर दौर में बेटी, बहू और सास की भूमिका में देखी, पढ़ी, लिखी और समझी जाती है जिसे "एचआरपी ग्रुप आफ कम्पनीज़" की वरिष्ठ निदेशक और रिहायश पसंद ज़िला पंचायत सदस्या श्रीमती प्रीति राजकुमार पाल ने साबित किया है और खुद को एक मजबूत "बहू" के तौर पर सिराजे-हिंद में स्थापित किया है जिसका नतीजा है कि आज लोग आपको गर्व से कह रहे हैं वाह "बहू जी" वाह।
