कड़ी सुरक्षा के बीच लौंदा में मुस्लिम समुदाय ने निकाला जुलूस -ए- मोहम्मदी
कड़ी सुरक्षा के बीच लौंदा में मुस्लिम समुदाय ने निकाला जुलूस -ए- मोहम्मदी
चंदौली। जश्न-ए-ईद मिलादुन्नबी (बारावफात) का त्योहार ग्रामीण क्षेत्रों में रविवार को बड़े उत्साह के साथ मनाया गया। वहीं हर साल की तरह इस साल भी अलीनगर थाना क्षेत्र के मख़दुमाबाद लौंदा गाँव में अंजुमन मख़दुमिया इस्लामिया इत्तेहादे मिल्लत कमेटी की ओर से पैगम्बर- ए- इस्लाम की पैदाइश यानि ईद-मिलादुन्नबी बहुत शानदार तरीके से मनाया गया। गाँव में मुस्लिम इलाकों में सरकार की आमद मरहबा के नारे बुलन्द हो रहे थे तो मस्जिदें और रास्ते दुल्हन की तरह झालरों व झंडीयो से सजाए गए थे। इसके अलावा गाँव के दिग्घी, बसीला, लौंदा, शकुराबाद, मलोखर, आलमपुर, दुलहीपुर, पड़ाव, सुजाबाद बहादुरपुर, सेमरा, कटेसर, नाथुपूर, रामनगर, मुगलसराय, रेमा, कुंडा कला, समेत इलाकों में भी ईद मिलादुन्नबी के जलसों का सिलसिला चला। लौंदा गांव में अंजुमन मख़दुमिया इस्लामिया इत्तेहादे मिल्लत कमेटी की ओर से ईद- मिलादुन्नबी के दिन रविवार को जामा मस्जिद स्थित कोट पर संरक्षक खुर्शीद प्रधान, सदर हाजी एहतेशाम अली, नायब सदर मोजीब अहमद मिल्की (बाबू), जर्नल सेक्रेटरी सद्दाम हुसैन व खजांची मोहम्मद साकिब की निगरानी में प्रोग्राम को मुकम्मल किया गया। इस मौके पर बच्चे हाथों में इस्लामिक झण्डे उठाए मरहबा, सरकार की आमद मरहबा का नारा बुलन्द कर रहें थें। मिलाद में बच्चों की टोलियां थीं जो नात पढ़ रहे थे। नात- ए -पाक की शुरुआत सदर हाजी एहतेशाम अली के नातिया कलाम से हुई। इसके बाद सेराज भाई, हाजी नुरूल हक, शहबाज़ मख़दुमाबादी, तमशीर मिल्की, मोनीष मखदुमाबादी, फैज शाबरी कैप्सी, मो साकिब, हाफिज शाहिद अंसारी ने पढ़ी व रात में मौलाना साकिब रजा कादरी ने तकरीर की। उनकी तकरीर पैगम्बर साहब की पैदाइश और इस्लामी तालीमात के सिलसिले पर आधारित रही। मिलादुन्नबी में मुल्क और कौम की सलामती के लिये दुआ मांगी गई।
मक्का में जन्म लेने वाले पैगंबर मोहम्मद साहब का पूरा नाम पैगंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम था। उनकी माताजी का नाम अमीना बीबी और पिताजी का नाम अब्दुल्लाह था। वे पैग़ंबर हजरत मोहम्मद ही थे जिन्हें अल्लाह ने सबसे पहले पवित्र कुरान अता की थी। इसके बाद ही पैग़ंबर साहब ने पवित्र कुरान का संदेश जन-जन तक पहुंचाया। हजरत मोहम्मद का उपदेश था कि मानवता को मानने वाला ही महान होता है। पैग़ंबर हजरत मोहम्मद के जन्मदिन अथवा जन्म उत्सव को ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के रूप में मनाया जाता है। ईद-ए-मिलाद-उन-नबी पर रातभर के लिए प्रार्थनाएं होती हैं और जुलूस भी निकाले जाते हैं। इस दिन इस्लाम को मानने वाले हजरत मोहम्मद के पवित्र वचनों को पढ़ा करते हैं। लोग मस्जिदों व घरों में पवित्र कुरान को पढ़ते हैं और नबी के बताए नेकी के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित होते हैं। पैगंबर हजरत मोहम्मद के जन्मदिवस पर घरों को तो सजाया ही जाता है, इसके साथ ही मस्जिदों में खास सजावट होती है। उनके संदेशों को पढ़ने के साथ-साथ गरीबों में दान देने की प्रथा है। दान या जकात इस्लाम में बेहद अहम माना जाता है। मान्यता है कि जरूरतमंद व निर्धन लोगों की मदद करने से अल्लाह प्रसन्न होते है। दुआ खानी व मिलाद में खुर्शीद प्रधान, हाजी सरफुद्ददीन सफ्फू, हाजी जियाउल हक, वसीम मिल्की, शाहिद अली, अब्दुल खालीक, कुद्दूश अहमद कल्ला, आसिफ़ इकबाल, डाॅ तारीक, इर्शाद अहमद, तनवीर मास्टर, मेराज अहमद नन्हे, बाबू भाई, अजीम अहमद पिंटू, अल्फाज़ अहमद पप्पू, नौशाद अहमद, फैजान अहमद, हारीश अहमद, मामुन रशीद, एकलाख "बाबा", अमजद जमाल शाबरी उर्फ शेरा, दिलशाद अहमद गोरे, मो आजम, इंसाफ अहमद, डाॅ आकिब, आतीफ मिल्की, फैजान उर्फ गोलू फुजैल, नदीम, अनस, अद्दु, कल्लू आदि लोग शामिल हुए।
