यूपी निकाय चुनाव में दलित-मुस्लिम गठजोड़ बढ़ाएगी बड़े राजनीतिक दलों की मुश्किल, छोटे दल तैयार कर रहे बड़ा प्लान
यूपी निकाय चुनाव में दलित-मुस्लिम गठजोड़ बढ़ाएगी बड़े राजनीतिक दलों की मुश्किल, छोटे दल तैयार कर रहे बड़ा प्लान
आजमगढ़. यूपी निकाय चुनाव दिसंबर 2022में होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। राजनीतिक दल इसे सत्ता का सेमीफाइनल मान रहे हैं। चुनाव में बड़ी जीत हासिल करने की रणनीति भी बनाई जा रही है लेकिन छोटे दलों ने चुनाव लड़ने का फैसला कर इनकी मुश्किल बढ़ा रहे है। खासबात है कि जिन दलित व मुस्लिम वोटों पर बड़े दलों की नजर है उन्ही के भरोसे छोटे दल भी निकाय चुनाव में जीत हासिल करने की कोशिश करते नजर आएंगे। इसके लिए समान विचारधारा वाले दलों से गठबंधन की रणनीति पर काम शुरू कर दिए है। अगर वे सफल होते हैं तो बड़े दलों की मुश्किल बढ़नी तय है।
बता दें कि नगरीय निकाय चुनाव में हमेशा से विपक्ष पर बीजेपी भारी पड़ी है लेकिन कई जिले ऐसे भी है जहां सपा बसपा का वर्चश्व देखने को मिलता रहा है। एक बार फिर दिसंबर माह में निकाय चुनाव होने की संभावना है। चुंकि 2024 में लोकसभा चुनाव होना है इसलिए इस चुनाव को सभी दल पूरी गंभीरता से ले रहे है। एआईएमआईएम से लेकर आम आदमी पार्टी तक पूरी ताकत से मैदान में उतरने की तैयारी में हैं लेकिन सभी को पता है कि मतों के ध्रुवीकरण के लिए उन्हें मजबूत साथी की जरूरत है। इसलिए गठबंधन की पुरजोर कोशिश हो रही है। सबकी नजर दलित और मुस्लिम मतों पर है। कारण कि इन्हें पता है कि दलित मुस्लिम गठजोड़ उन्हें शहर की सत्ता पर काबिज करा सकता है।
राष्ट्रीय ओलमा काउंसिल के अध्यक्ष मौलाना आमिर रशादी के मुताबिक नगरीय चुनाव की तैयारियों को लेकर 11 सितम्बर को लखनऊ में संगठन की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक बुलायी गयी है। इस बैठक में तय किया जाएगा कि संगठन किन जिलों में चुनाव लड़ेगा और जीत हासिल करने के लिए उसकी रणनीति क्या होगी। पिछले चुनाव में उलेमा कौंसिल को आजमगढ़ की बिलरियागंज और माहुल नगर पंचायत में बड़ी सफलता मिली थी। दोनों ही जगह पार्टी के अध्यक्ष काबिज हैं।
ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने पहले ही सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। प्रदेश अध्यक्ष शौकत अली के मुताबिक निकाय चुनाव के लिए पार्टी ने यूपी को चार जोन में विभाजित कर टीमें गठित की हैं। जोनल अध्यक्ष बनाये गये हैं। साथ ही ए, बी और सी श्रेणी में नगर पालिका, नगर पंचायतों के प्रभारी तैनात किये गये हैं। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि मुस्लिम आबादी बाहुल्य शहरी निकायों पर उनका ज्यादा फोकस रहेगा। मुस्लिम धु्रवीकरण के साथ दलित, पिछड़े और वंचित समाज को लामबंद करने की रणनीति पर पार्टी काम कर रही है। पिछले निकाय चुनाव में एआईएमआईएम ने गाजियाबाद की डासना नगर पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव जीता था। उसके 32 पार्षद बने थे। वहीं पीस पार्टी ने भी नगरीय निकाय चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। पीस पार्टी किसान पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी। पार्टी सभी नगर निगमों के महापौर पद पर अपने उम्मीदवार उतारेगी।
आम आदमी पार्टी ने इन चुनावों के लिए अपनी चुनाव समिति गठित कर दी है। आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह पहले ही कह चुके हैं कि उनकी पार्टी पूरी ताकत के साथ निकाय चुनाव लड़ेगी। पिछले चुनाव में आप के प्रदेश में 2 नगर पालिका चेयरमैन और 50 पार्षद विजई हुए थे। इस बार पार्टी का प्रयास प्रदर्शन में और सुधार करना होगा। इसके अलावा सुभासपा, सपा, बसपा और भाजपा भी पूरी ताकत से चुनाव तैयारियों में जुटी है। बीजेपी पहले ही साफ कर चुकी है कि वह जमीनी कार्यकर्ताओं को मैदान में उतारेगी। बड़े दलों के सामने छोटे दल कितनी चुनौती पेश करेंगे यह तो समय बताएगा लेकिन एक बात साफ है कि जिस तरह से समान विचारधारा वाले दलों से गठबंधन की कोशिश हो रही है उससे बड़े दलों की चुनौती चुनाव में बढ़ती दिख रही है।
