मैनपुरी के गढ़ में सपा को क्यों महसूस हो रहा खतरा
मैनपुरी के गढ़ में सपा को क्यों महसूस हो रहा खतरा
आज़मगढ़। मुलायम सिंह यादव ने वर्ष 1992 में सपा का गठन किया। इसके बाद से ही पार्टी मैनपुरी में राज कर रही है। वर्ष 1996 से अब तक इस सीट से मुलायम सिंह या उनके परिवार के लोग ही सांसद चुने गए हैं। फिर भी उपचुनाव में सपा मुखिया अखिलेश यादव की बेचौनी साफ दिख रही है। उन्हें गढ़ में वोट मांगने के लिए घर-घर जाना पड़ रहा है। आखिर क्यों? अखिलेश यादव के डर के पीछे क्या है कारण आइए जानते हैं।
दस विधायक के बाद आजमगढ़ में हार
आजमगढ़ भी सपा का गढ़ कहा जाता था। यहां से साल 2014 में मुलायम सिंह यादव और 2019 में अखिलेश यादव सांसद चुने गए थे। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा ने जिले की सभी दस विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। अखिलेश यादव के संसदीय सीट से त्यागपत्र के बाद आजमगढ़ संसदीय सीट पर पिछले दिनों उपचुनाव हुआ। सपा जीत की प्रबल दावेदार थी। अखिलेश यादव ने अपने चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को मैदान में उतारा था। इसके बाद भी सपा चार विधानसभा क्षेत्र में हार गई। बीजेपी उपचुनाव जीतने में सफल रही। सपा अपने बेस वोट यादव को भी उपचुनाव में एकजुट नहीं रख पाई। मैनपुरी में भी सपा को मतों के बिखराव का डर सता रहा है।
प्रदर्शन में निरंतरता का अभाव
मैनपुरी में सपा भले ही लगातार जीतती रही हो लेकिन वह वोट बैंक को बांधकर नहीं रख पाई है। वर्ष 2014 से अब तक हुए चुनाव पर गौर करें तो स्थिति साफ हो जाती है। 2014 में मुलायम सिंह यादव 5,95,918 मत हासिल कर जीते थे। बीजेपी के शत्रुधन सिंह चौहान को मात्र 2,31,252 वोट मिला था। हार जीत का अंतर 3,64,66 मत था। वहीं वर्ष 2019 में मुलायम के जीत का अंतर घटकर एक लाख से कम हो गया।
सबसे अधिक तेजप्रताप को मिला वोट
मुलायम सिंह के मैनपुरी सीट से त्यागपत्र के बाद वर्ष 2014 में यहां उपचुनाव हुआ। उपचुनाव में सपा के तेज प्रताप यादव 6,53,786 मत पाकर विजयी रहे थे। बीजेपी के प्रेम सिंह शाक्य को मात्र 3,32,537 वोट मिला था। तेज प्रताप मैनपुरी में अब तक सबसे अधिक वोट पाने वाले प्रत्याशी हैं।
वर्ष 2019 में सपा-बसपा गठबंधन के बाद जीत का अंतर एक लाख से कम
वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव सपा-बसपा गठबंधन कर लड़ी थीं। सीट सपा के खाते में थी। मुलायम सिंह यादव मैदान में उतरे थे। बीजेपी ने प्रेम सिंह शाक्य को फिर मैदान में उतारा था। गठबंधन के बाद हार जीत का अंतर बढ़ने की संभावना जताई जा रही थी, लेकिन परिणाम चौंकाने वाला था। मुलायम सिंह यादव को वर्ष 2014 से भी कम मात्र 5,24,926 मत मिले। वहीं बीजेपी के प्रेम सिंह को 2014 के मुकाबले एक लाख अधिक वोट मिले। 4,30,537 वोट पाकर शाक्य दूसरे स्थान पर रहे। जो दर्शाता है कि बीजेपी की पकड़ लगातार मैनपुरी में मजबूत हुई है। यह अखिलेश को बेचौन करने के लिए काफी है।
वर्ष 2014 के बाद अति पिछड़ों की बीजेपी की तरफ लामबंदी
चुनावी आंकड़ों पर गौर करें तो बीजेपी वर्ष 2014 से वर्ष 2022 के बीच लगातार विपक्ष पर बढ़त हासिल कर रही है। मुलायम सिंह यादव का 2019 में मैनपुरी में बीजेपी को मात्र 94389 मत के अंतर से हरा पाए थे। वहीं 2019 में अखिलेश यादव आजमगढ़ सीट 2 लाख 50 हजार के अंतर से जीतने के बाद उपचुनाव में पार्टी को नहीं जिता पाए। धर्मेंद्र यादव को 10,000 मतों से हार का सामना करना पड़ा था। रामपुर सीट भी सपा नहीं बचा पाई थी। बीजेपी की चुनावों मेें लगतार जीत के पीछे एक मात्र कारण अति पिछड़े और अति दलित मतों की पार्टी के प्रति लामबंदी है। मैनपुरी में अति पिछड़े और दलित ही हार जीत का अंतर तय करने वाले हैं। यह जिनके साथ खड़े होंगे उसकी जीत तय है। खासतौर पर शाक्य मतदाता जो यहां यादव के बाद दूसरे नंबर पर हैं। बीजेपी ने रघुराज सिंह शाक्य पर दाव खेला है। स्वजातीय मतदाता उनके साथ खड़ा हुआ तो सपा की चुनौती बढ़ जाएगी।
दलित वोटों के बीजेपी के साथ खड़े होने का खतरा
मैनपुरी उपचुनाव में बसपा ने प्रत्याशी नहीं उतारा है। मायावती लगातार सपा पर हमलावर दिख रही है। वहीं दलित और यादव कभी एक मंच पर साथ खड़ा होने में असहज महसूस करता है। वर्ष 2019 में सपा-बसपा के गठबंधन के बाद बीजेपी की बड़ी जीत इसका प्रमाण है। ऐसे में सपा को डर है कि दलित वोट कहीं बीजेपी के साथ न खड़ा हो जाए। अगर ऐसा हुआ तो सपा के लिए गढ़ बचाना मुश्किल हो जाएगा। यही वजह है कि खुद अखिलेश यादव घर-घर दस्तक दे रहे हैं।
बीजेपी के सत्ता में होने का प्रभाव
आमतौर पर यह धारणा रही है कि उपचुनाव सत्ताधारी दल का होता है। पिछले कुछ वर्षों में उपचुनाव के परिणाम भी इस तरफ इशारा करते रहे हैं। इस समय बीजेपी केंद्र व प्रदेश दोनों जगह सत्ता है। सत्ता में होने के कारण संसाधान सपा की अपेक्षा बीजेपी के पास अधिक है। बीजेपी ने चुनाव में मंत्रियों की पूरी फौज उतार दी। ऐसे में सपा की बेचौनी बढ़नी लाजमी है।
